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शीतला सप्तमी क्या है? यहां जानें इसका महत्व और शुभ मुहूर्त

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शीतला सप्तमी माँ शीतला को समर्पित त्योहार है। शीतला देवी माँ दुर्गा और माँ पार्वती के अवतार हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी शीतला प्रकृति की उपचार शक्ति का प्रतीक है। इस दिन भक्त अपने बच्चों और परिवार के सदस्यों को छोटी माता और चेचक जैसी बीमारियों से पीड़ित होने से बचाने के लिए मां शीतला की पूजा करते हैं। 

हिंदू धर्म में शीतला सप्तमी ही एक ऐसा व्रत है जिसमें बासी भोजन किया जाता है। इसीलिए इस पर्व को बसोरा(बसौड़ा) भी कहते हैं। बसोरा का तात्पर्य बासी भोजन से होता है। इस दिन घर में ताजा भोजन नहीं बनाया जाता है। एक दिन पहले ही भोजन बनाकर रख दिया जाता है, फिर दूसरे दिन प्रातः महिलाओं द्वारा शीतला माता का पूजन के बाद घर के सभी लोग बासी भोजन करते हैं। 

तो आइए, देवदर्शन के इस ब्लॉग में शीतला सप्तमी (sheetala saptami 2022) कब है? शीतला सप्तमी का महत्व और शुभ मुहूर्त को विस्तार से जानें। 

शुभ मुहूर्त

शीतला सप्तमी का व्रत वर्ष में दो बार किया जाता है। पहला श्रावण महीने में और दूसरा चैत्र महीने में शुक्ल पक्ष के सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। लेकिन चैत्र महीने में पड़ने वाली शीतला सप्तमी तिथि को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है।

शीतला सप्तमी प्रारम्भ- मार्च 24, 2022 को प्रातः 02:16 बजे से

शीतला सप्तमी समाप्त- मार्च 25, 2022 को  प्रातः 12:09 बजे तक

शीतला सप्तमी का महत्व

स्कंद पुराण के अनुसार, माता शीतला रोगों से बचाने वाली देवी हैं। माता शीतला अपने हाथों में कलश, सूप, झाड़ू और नीम के पत्ते धारण किए हुए रहती हैं और गधे की सवारी करती हैं। ऐसे में शीतला सप्तमी के दिन व्रत और आराधना करने से शीतलाजनित रोग-दोष दूर हो जाते हैं। धार्मिक मान्यता है कि जिस घर की महिलाएं शुद्ध मन से इस व्रत को करती हैं, उस परिवार में मां शीतला धन-धान्य से पूर्ण कर प्राकृतिक विपदाओं से दूर रखती हैं। 

शीतला सप्तमी की पूजन विधि

  • सुबह जल्दी उठकर नित्यक्रिया आदि से निवृत्त होकर स्नान करें।
  • स्वच्छ कपड़े धारण कर मां शीतला का ध्यान करें।
  • पूजा की थाली में दही, रोटी, बाजरा, षष्ठी को बने मीठे चावल, नमक और मठरी रखें।
  • इसके अलावा आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, सिक्के और मेहंदी रखें। 
  • शीतला माता की पूजा करें। 
  • पूजा के दौरान मेहंदी और कलावा सहित सभी सामग्री माता को अर्पित करें। 
  • अंत में जल चढ़ाएं और थोड़ा जल बचाएं। 
  • इसे घर के सभी सदय आंखों पर लगाएं और थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कें। 
  • अगर पूजन सामग्री बच जाए तो ब्राम्हण को दान करें।

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