काशी(वाराणसी) विश्व का प्राचीन शहर है। इसे भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक राजधानी कहा जाता है। कहा जाता है कि प्रलयकाल में भी काशी शहर का विनाश नहीं होता है। यह विश्व का प्राचीनतम जीवंत शहर है। मान्यता है कि यहां कण-कण में भगवान शिव का वास है।
यहां काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थित श्री विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। काशी विश्वनाथ मंदिर एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें छोटे मंदिरों की एक श्रृंखला है, जो नदी के पास विश्वनाथ गली नामक एक छोटी गली में स्थित है। मंदिर में मुख्य देवता का लिंग 60 सेंटीमीटर (24 इंच) लंबा और 90 सेंटीमीटर (35 इंच) की एक चांदी की वेदी में रखा गया है। मुख्य मंदिर चतुर्भुज है और अन्य देवताओं के मंदिरों से घिरा हुआ है।
धार्मिक आस्था का पुरातन केंद्र है काशी विश्वनाथ मंदिर
इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, सन्त एकनाथ, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, महर्षि दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ है। यहीं पर सन्त एकनाथजी ने वारकरी सम्प्रदाय का महान ग्रन्थ श्रीएकनाथी भागवत लिखकर पूरा किया और काशी नरेश तथा विद्वतजनों द्वारा उस ग्रन्थ की हाथी पर धूमधाम से शोभायात्रा निकाली गई थी। महाशिवरात्रि की मध्य रात्रि में प्रमुख मंदिरों से भव्य शोभा यात्रा ढोल नगाड़े इत्यादि के साथ बाबा विश्वनाथ जी के मंदिर तक जाती है।
पौराणिक कथा
शिव पुराण के अनुसार, एक बार भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु के बीच एक बहस हुई कि उनमें से कौन सर्वोच्च है। उनका परीक्षण लेने के लिए, भगवान शिव ने प्रकाश के एक विशाल अंतहीन स्तंभ (ज्योतिर्लिंग) से तीनों संसार को भेद दिया, और यह निर्धारित करने के लिए कि उनमें से कौन शक्तिशाली था, दोनों को स्तंभ के अंत का पता लगाने के लिए कहा गया। भगवान विष्णु ने वराह का रूप धारण किया और नीचे की ओर चल पड़े अथवा भगवान ब्रह्मा ने खंभे की चोटी पर उड़ान भरने के लिए हंस का रूप धारण किया। भगवान ब्रह्मा ने झूठ बोला कि उन्होंने अंत का पता लगा लिया है अथवा साक्षी के रूप में एक कतुकी फूल की पेशकश की। भगवान विष्णु ने विनम्रता से स्वीकार किया कि वह सतम्भ का अंत ढूंढ़ने में असमर्थ रहे। भगवान शिव ने तब क्रोधी भैरव का रूप धारण किया, भगवान ब्रह्मा के पांचवें सिर को काट दिया, और भगवान ब्रह्मा को शाप दिया कि उनकी पूजा नहीं की जाएगी। अपनी ईमानदारी के लिए भगवान विष्णु को भगवान शिव के साथ अनंत काल तक पूजा जाएगा।
मंदिर को कई बार तोड़ने की कोशिश
काशी विश्वनाथ मंदिर को अलग-अलग शासकों द्वारा नष्ट करने की कोशिश निरंतर होती आयी है। मूल विश्वनाथ मंदिर को कुतुब-उद-दीन ऐबक की सेना ने नष्ट कर दिया था, जब उन्होंने कन्नौज के राजा को हराया था। मंदिर को फिर से बनाया गया, फिर नष्ट किया गया और पुनर्निर्माण किया गया; यह प्रक्रिया कई शताब्दियों तक जारी रही।
यद्यपि मुगल सम्राट अकबर ने मूल मंदिर बनाने की अनुमति दी थी, लेकिन उनके वंशज औरंगज़ेब ने बाद में मंदिर को नष्ट कर दिया और वहाँ एक मस्जिद का निर्माण किया। वर्तमान मंदिर इंदौर की रानी, महारानी अहिल्या बाई होल्कर द्वारा बनाया गया था।
काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में 5 रोचक तथ्य
- काशी मूल रूप से संस्कृत शब्द ‘कास’ से लिया गया था जिसका अर्थ है ‘चमक’। सदियों से कई हमलों और विपत्तियों के पश्चात भी शहर और मजबूत होकर दुनिया के सामने आता है।
- वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यदि श्रद्धालु सच्चे हृदय से शिवलिंग के दर्शन करते हैं तो श्रद्धालु मोक्ष प्राप्त करते हैं।
- मंदिर एक अद्वितीय छत्र से सजा हुआ है जो शुद्ध सोने से बना है। अक्सर ऐसा माना जाता है कि जो लोग इस स्वर्ण छत्र को देखते हैं, और मनोकामना मांगते हैं, उनकी मनोकामना पूरी होती है।
- मंदिर में एक कुंआ’है, जहाँ भगवान शिव की मूर्ति को छुपा दिया गया था जब औरंगज़ेब मंदिर को नष्ट करने की योजना बना रहा था।
- यह माना जाता है कि जब पृथ्वी का निर्माण किया गया था, तो काशी पर प्रकाश की पहली किरण पड़ी थी। ऐसी किंवदंतियाँ हैं जो मानती हैं कि भगवान् शिव वास्तव में कुछ समय के लिए यहाँ रुके थे। भगवान शिव को शहर और उसके लोगों का संरक्षक माना जाता था।