हिंदी पंचांग के अनुसार प्रत्येक महीने में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को कालाष्टमी का व्रत किया जाता है। इसे मासिक कालाष्टमी (masik kalashtami) भी कहा जाता है। हिंदू धर्म में कालाष्टमी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान भैरव की पूजा-अर्चना की जाती है। कालाष्टमी के दिन व्रत और भगवान भैरव की पूजा करने से सभी तरह के दोषों से मुक्ति मिल जाती है। भारत के कई राज्यों में कालाष्टमी को भैरवाष्टमी के नाम से भी मनाया जाता है।
तो आइए देवदर्शन के इस ब्लॉग में आज हम मासिक कालाष्टमी पूजा विधि और इसके महत्व को विस्तार से जानें।
जानिए, वर्ष 2022 में पहले मासिक कालाष्टमी का शुभ मुहूर्त
वर्ष 2022 में पहला मासिक कालाष्टमी व्रत 25 जनवरी 2022 को पड़ रहा है।
इस दिन शुभ मुहर्त 25 जनवरी सुबह 7 बजकर 48 मिनट से 26 जनवरी सुबह 6 बजकर 25 मिनट तक है।
मासिक कालाष्टमी की पूजा विधि
- कालाष्टमी के दिन प्रातः जल्दी उठकर स्नान करें।
- स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद घर के मंदिर में या किसी शुभ स्थान पर कालभैरव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- इसके चारों तरफ गंगाजल छिड़ककर उन्हें फूल अर्पित करें।
- इसके बाद नारियल, पान, गेरुआ आदि चीजें अर्पित करें।
- कालभैरव के समक्ष चौमुखी दीपक और धूप-दीप करें।
- भैरव चालीसा का पाठ और भैरव मंत्रों का 108 बार जाप करें।
- भगवान भैरव की पूजा की मान्यता रात्रि के समय भी है इसलिए रात्रि में पुनः भैरव भगवान का पूजन करें।
कालाष्टमी का महत्व
कालाष्टमी (kalashtami) के दिन भगवान भैरव का व्रत और पूजन करने से सभी प्रकार के भय से मुक्ति प्राप्त होती है। कालाष्टमी का व्रत करने से व्यक्ति को रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है। भगवान भैरव हर संकट से अपने भक्त की रक्षा करते हैं। उनके भय से सभी नकारात्क शक्तियां दूर हो जाती हैं। कालाष्टमी के व्रत की पूजा रात्रि में की जाती है इसलिए जिस रात्रि में अष्टमी तिथि बलवान हो उसी दिन व्रत किया जाना चाहिए।
कालाष्टमी की पौराणिक मान्यता
मान्यता है कि कालाष्टमी के दिन भगवान शिव ने पापियों का विनाश करने के लिए अपना रौद्र रूप धारण किया था। शिव के दो रूप हैं। बटुक भैरव और काल भैरव। जहां बटुक भैरव सौम्य हैं वहीं काल भैरव रौद्र रूप में हैं। मासिक कालाष्टमी के दिन रात्रि में पूजा की जाती है। इस दिन काल भैरव की पूजा करने से भक्तों की सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं रात को चंद्रमा को जल चढ़ाने के बाद ही यह व्रत पूरा माना जाता हैं।
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