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कोणार्क सूर्य मंदिर: मंदिर का इतिहास एवं रहस्य, यहां जानें

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हिंदू धर्म में भगवान सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है। सूर्य की पूजा न केवल आस्था अपितु प्रकृति से भी जोड़ता है। शास्त्रों के मुताबिक भगवान सूर्य देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है। वैदिक काल से ही भगवान सूर्य की पूजा की जा रही है। राजाओं की मनोकामना पूरी होने पर और भगवान सूर्य के प्रति अटूट आस्था प्रदर्शित करने के लिए कई राजाओं ने सूर्य भगवान के मंदिर बनाएं। इन्हीं में से एक कोणार्क का सूर्य मंदिर है। यह मंदिर अपनी भव्यता और अद्भुत बनावट के कारण पूरे देश में प्रसिद्ध है। 

तो आइए, देवदर्शन के इस लेख में कोणार्क सूर्य मंदिर (konark sun temple) के बारे में कुछ रोचक तथ्य के बारे में जानते हैं।

सूर्य मंदिर कहां स्थित है? (where is the sun temple located?)

सूर्य मंदिर भारत के ओडिशा के पवित्र शहर पुरी में स्थित है,जो भगवान सूर्य (lord sun) को समर्पित है। यह मंदिर एक विशाल रथ के आकार में बना हुआ है। इसलिए इस मंदिर को भगवान का रथ भी कहा जाता है। इस मंदिर को कोणार्क मंदिर भी कहते हैं। 

कोणार्क दो शब्दों कोण और अर्क से मिलकर बना है। जहां पर कोण का अर्थ कोना यानी किनारा और अर्क का अर्थ सूर्य से है। मतलब की सूर्य का कोना जिसे कोणार्क कहा जाता है। इसलिए इस मंदिर को कोणार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है।

कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण सम्राट नरसिम्हा देव ने 1250 ईसवी में करवाया था। इस विशाल मंदिर को लगभग 1200 मजदूर की सहायता से करीब 12 साल में बनवाया गया था। यह मंदिर 229 फीट ऊंचा बना है।  

कोणार्क सूर्य मंदिर का महत्व (significance of konark Sun temple)

वैसे तो कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़ी कई धार्मिक और पौराणिक कथाएं है। लेकिन एक प्रचलित कथा के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण के पुत्र सांबा ने नारद मुनि का अपमान किया था, जिससे नारद मुनि क्रोध होने उन्हें कुष्ठ रोग (कोढ़ रोग) का श्राप दे दिया। 

सांबा इस श्राप का निवारण के लिए मित्रवन में चंद्रभागा नदी के सागर संगम पर कोणार्क में 12 वर्षों तक कठोर तपस्या की। उनकी इस तपस्या से सूर्य देव प्रसन्न होकर सांबा को नारद मुनि के श्राप से मुक्ति दी। इसके बाद सांबा नदी में स्नान कर रहे थे, तभी उन्हें नदी में भगवान सूर्य की एक प्रतिमा मिली। उन्होंने उस प्रतिमा को उसी स्थान पर स्थापित कर दिया। जहां पर भगवान सूर्य ने उन्हें श्राप मुक्त किया था। तब से लेकर आज तक यह स्थान पवित्र माना जाता है और उस स्थान को कोणार्क सूर्य मंदिर के नाम से जाना जाता है। 

कोणार्क सूर्य मंदिर तक कैसे जाएं (how to reach konark sun temple)

कोणार्क सूर्य मंदिर जाने का सही समय फरवरी से अक्टूबर है। लेकिन आप अपने सुविधानुसार पूरे साल जा सकते हैं। 

कोणार्क सूर्य मंदिर भुवनेश्वर रेलवे स्टेशन से 65 किलोमीटर और पुरी से 35 किलोमीटर की दूरी पर है। 

यहां आप ट्रेन, बस और हवाई जहाज तीनों साधनों द्वारा जा सकते हैं। कोणार्क सड़क मार्ग से भारत के लगभग सभी हिस्सों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है आप बड़ी आसानी से यहां पहुच सकते हैं। 

यदि आप वायुमार्ग से कोणार्क जाना चाहते हो तो यहां का सबसे नजदीकी एअरपोर्ट बीजू पटनायक इंटरनेशनल एयरपोर्ट भुवनेश्वर है जो भुवनेश्वर लगभग 65 किलोमीटर है। 

कोणार्क सूर्य मंदिर से जुड़े कुछ रोचक तथ्य (interesting facts related to konark sun temple)

  • कोणार्क सूर्य मंदिर एक रथ के आकार में बनाया गया है, जिसमें कुल 24 पहिए हैं, जो दिन के 24 घंटों का प्रतीक माने जाते हैं। 
  • कुछ लोगों की यह भी मान्यता है, कि 12-12 अश्वों की दो कतारें जो वर्ष के 12 माह प्रतीक को दर्शाते हैं।
  • कोणार्क सूर्य मंदिर को वर्ष 1984 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल में भी शामिल किया गया है।
  • प्राचीन समय में समुद्र से यात्रा करने वाले लोग इस मंदिर को ‘ब्लैक पगोडा’ भी कहते थे, क्योंकि उनका मानना था कि यह मंदिर जहाजों को किनारे की ओर आकर्षित कर उन्हें नष्ट कर देता है।
  • मंदिर की चोटी पर 52 टन चुंबकीय लोहे का प्रयोग किया गया है। माना जाता है, कि इसी चुंबक के कारण से समुद्र की सभी गतिविधियों को यह मंदिर आसानी से सहन कर लेता है।
  • मंदिर के दोनों प्रवेश द्वार पर दो विशाल शेर स्थापित किए गए हैं। जिसमें हाथी को कुचलता हुआ दर्शाया गया है और साथ ही प्रत्येक हाथी के नीचे मानव शरीर को भी दर्शाया गया है। 

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