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कुंभ संक्रांति कब है? यहां जानें, कुंभ संक्रांति की पूजा विधि और महत्व

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कुंभ संक्रांति (kumbha sankranti) सूर्य देवता को समर्पित एक महत्वपूर्ण त्योहार है। कुंभ संक्रांति (kumbha sankranti) को पूरे भारत में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। इसी दिन सूर्य मकर राशि से कुंभ राशि में प्रवेश करता है। मान्यता है कि इस दिन नदियों में देवी-देवताओं का वास होता है। इसलिए कुंभ संक्रांति के दिन पवित्र नदियों में स्नान करना का विधान है। इस दिन सूर्य भगवान की पूजा करना शुभ होता है। आपको बता दें, कुंभ संक्रांति का दिन दान के लिए उत्तम माना गया है। इस दिन गौदान का विशेष महत्व है।

तो आइए, देवदर्शन के इस ब्लॉग में आज कुंभ संक्रांति की तिथि, शुभ मुहूर्त और महत्व के बारे में विस्तार से जानें।

कुंभ संक्रांति 2022 कब है? (kumbha sankranti 2022)

कुंभ संक्रांति का शुभ मुहूर्त

वर्ष 2022 का कुंभ संक्रांति 13 फरवरी, दिन रविवार को पड़ रहा है। इस दिन दान और पूजा के लिए शुभ मुहूर्त का समय 13 फरवरी को प्रातः 12 बजकर 13 मिनट से दोपहर 12 बजकर 57 मिनट तक है। इस शुभ मुहूर्त में आप पूजा और शुभ कार्य कर सकते हैं।

कुंभ संक्रांति की पूजा विधि (kumbha sankranti puja vidhi)

  • कुंभ संक्रांति के दिन सुबह जल्दी उठकर शुद्ध जल में स्नान आदि करें।
  • अगर हो सके तो किसी भी पवित्र नदी में जाकर स्नान करें।
  • कुंभ संक्रांति के दिन नए वस्त्रों को धारण करें।
  • इसके बाद सूर्य भगवान को अर्घ्य दें।
  • इस दिन भगवान सूर्य की सूर्य का विधान होता है। इसलिए इस दिन भगवान सूर्य की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ करें।
  • कुंभ संक्रांति के दिन सूर्य चालीसा पढ़ें। ऐसा करने से सूर्य देव की कृपा आप पर बनी रहेगी।
  • इस दिन निर्धन और जरूरतमंद को अपनी इच्छा अनुसार दान अवश्य करें।  

कुंभ संक्रांति का महत्व

शास्त्रों में कुंभ संक्रांति (kumbha sankranti) की महिमा का वर्णन किया गया है। इसका महत्व पूर्णिमा, अमावस्या और एकादशी के पर्व से भी ज्यादा है। कहा जाता है कि इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। कुंभ संक्रांति के दिन दान-धर्म करने से व्यक्ति को सूर्य भगवान की कृपा के साथ उसके कई गुना फल की प्राप्ति होती है।

कुंभ संक्रांति की पौराणिक कथा

एक बार देवता और राक्षसों ने मिलकर समुद्र मंथन किया। इस मंथन से समुद्र से कई चीजें निकली जिसमें सबसे महत्वपूर्ण अमृत कलश था। अमृत कलश को राक्षसों से बचाने के ले देवताओं ने अमृत के बर्तन को प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में छिपा दिया था। कहा जाता है कि इन चारों स्थानों में कुंभ संक्रांति के दिन अमृत गिर जाता है। यही कारण है कि इन चारों स्थानों पवित्र माना गया है और इन स्थानों पर प्रत्येक 6 वर्ष पर कुंभ और 12 वर्ष पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है। यही कारण है कि इन चार स्थानों पर स्नान करने से मनुष्य को पापों से मुक्ति मिलती है।

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