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वट सावित्री व्रत (vat savitri vrat) की तारीख, पूजा विधि और व्रत करने की विधि जानिए यहां

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पति की आयु में वृद्धि करने वाला और संतान प्राप्ति में सहायक वट सावित्री व्रत उत्तर भारत, राजस्थान, गुजरात में महिलाओं का सबसे प्रिय त्यौहार है। यह व्रत अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग दिन मनाया जाता है। कई जगह ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जाता है। कई जगहों पर ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को यह व्रत मनाया जाता है। दोनों ही तिथियों को वट सावित्री व्रत (vat savitri vrat) करने की परंपरा में ज्यादा अंतर नहीं है। वट सावित्री व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है।

वट सावित्री व्रत (vat savitri vrat) कब है?

साल 2022 में वट सावित्री व्रत की तिथियां दो है-

पूर्णिमा वट सावित्री व्रत – 30 मई, 2022 सोमवार
अमावस्या वट सावित्री व्रत (vat savitri vrat) – 14 मई, 2022 मंगलवार

कैसे करें वट सावित्री व्रत

– वट सावित्री व्रत के दिन सुबह उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
– यह व्रत करवा चौथ की तरह मनाया जाने वाला त्यौहार है।
– सुबह स्नान के बाद महिलाएं श्रृंगार करें और सुहाग से जुड़ी चीजें पहनें।
– पूजा करने के लिए थाली सजाएं, जिसमें हल्दी, कुमकुम, मेहंदी, चावल आदि जरूर रखें।
– किसी शिव मंदिर में जाएं, जहां बरगद का पेड़ हो।
– बरगद के पेड़ के आसपास सफाई करें।
– यहां गणेशजी के बाद भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करें।
– इसके बाद सत्यवान और सावित्री की मूर्ति या चित्र सजाएं।
– देवी सावित्री को सुहाग के वस्त्र और चीजें अर्पित करें।
– इस समय माता पार्वती का भी ध्यान करें।
– देवी सावित्री से संतान के सुख के साथ पति की लंबी आयु की प्रार्थना करें।
– यहां बरगद के पेड़ को पूजने के दो कारण है। बरगद का पेड़ बहुत सालों तक फलता-फूलता है और पर्यावरणीय दृष्टि से भी बरगद का पेड़ काफी अच्छा माना जाता है।
– पूजा के दौरान पेड़ को जल से सीचें और दीपक प्रज्वलित करें।
– माना जाता है शिव, विष्णु और ब्रह्मा सभी का वास बरगद में होता है।
– पूजा के दौरान बरगद के पेड़ पर रोली और लाल सुती धागा लपेटे। लाल रंग सुहाग का प्रतीक है। इस दौरान शिव और विष्णु के मंत्रों का जाप करें।
– पूजा स्थल पर वट सावित्री की कथा सुनें।
– घर आकर अपने से बड़ों का आशीर्वाद लें।
– व्रत के दिन 108 फल का दान करना शुभ रहता है।

वट सावित्री व्रत कथा कथा (vat savitri vrat katha)

वट सावित्री व्रत पर सावित्री और उनके पति सत्यवान की पूजा की जाती है। यह व्रत सावित्री के कारण ही मनाया जाता है। सावित्री को कई जगह पर वेदमात्रा गायत्री और सरस्वती भी कहा जाता है। माना जाता है कि सावित्री भद्र देश के राजा अश्वपति की पुत्री थी। कई सालों के यज्ञ के बाद माता सावित्री ने प्रसन्न होकर उनके घर तेजस्वी कन्या के जन्म लेने का वरदान दिया था। कन्या के जन्म के बाद अश्वपति ने बेटी का नाम देवी के नाम पर सावित्री ही रखा।
सावित्री बेहद सुंदर थी। बड़े होकर सावित्री ने स्वयं के लिए वर खोजा। उसने सत्यवान नामक राजकुमार से शादी की, लेकिन उसका राजपाठ छिन चुका था। नारद मुनी ने सावित्री को बताया कि सत्यवान की आयु कम है, लेकिन फिर भी सावित्री ने सत्यवान का पूरा साथ दिया। जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए, तो सावित्री ने यमराज को जाने नहीं दिया। उसके पतित्व के बल पर यमराज का पीछा किया। यमराज ने उसे वरदान देने की बात कहीं, तो उसने पुत्र मांग लिया। बिना सोचे यमराज ने यह वरदान दे दिया। तब यमराज को सत्यवान को फिर से जीवित करना पड़ा। वट सावित्री व्रत (vat savitri vrat) के दौरान यह कथा पढ़ना काफी शुभ माना जाता है।

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